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विजिलेंस: “छोटी मछलियों पर जाल, मगरमच्छ अब भी गिरफ्त से बाहर – सिस्टम की मार या साजिश का जाल?”

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देहरादून

हर हफ्ते, कहीं न कहीं से एक खबर जरूर आती है—“विजिलेंस ने क्लर्क को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा”, “ईडी ने अफसर के घर से 50 लाख कैश जब्त किया”, या “चपरासी के लॉकर से करोड़ों की संपत्ति का खुलासा”। लेकिन सवाल यह है कि इन छोटे कर्मचारियों के पीछे जो असली खेल चल रहा होता है, वह कब सामने आएगा? आखिर वो बड़े मगरमच्छ कौन हैं जो तंत्र को चबा रही हैं, और फिर भी हमेशा कानून के शिकंजे से बाहर रहती हैं?

छोटी मछलियाँ, आसान टारगेट

किसी भी कार्रवाई में “पकड़ा गया आरोपी” अक्सर ऐसा कर्मचारी होता है जिसे सिस्टम का सबसे कमजोर कड़ी माना जाता है—जैसे बाबू, कनिष्ठ अभियंता, क्लर्क या एक चपरासी। इन लोगों को पकड़ना आसान होता है, न मीडिया में ज्यादा हल्ला होता है, न ही राजनीतिक दबाव। वहीं, इससे यह भी साबित किया जा सकता है कि एजेंसियाँ काम कर रही हैं।

बड़े मगरमच्छ : सिस्टम की सुरक्षा में

जिन अधिकारियों या नेताओं पर करोड़ों के घोटाले के आरोप होते हैं, वो आमतौर पर सत्ता, रसूख और सिस्टम में इतनी पकड़ रखते हैं कि उनके खिलाफ जांच शुरू करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। उनके खिलाफ सबूत जुटाना भी आसान नहीं होता, क्योंकि सारा खेल कागजों और लोगों के मुंह बंद कराने में ही चलता है।

कई बार जांच एजेंसियों पर राजनीतिक दबाव भी होता है। अगर कोई बड़ा नाम जांच के दायरे में आता है, तो मामला या तो ठंडे बस्ते में चला जाता है या फिर जांच को इस कदर घुमा दिया जाता है कि अंत में सबूत नाकाफी साबित हो जाते हैं।

‘नकली संतुलन’ का खेल

जब जनता सवाल करती है कि “बड़े भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई कब होगी?”, तो एजेंसियाँ छोटे मामलों को दिखाकर यह दर्शाती हैं कि व्यवस्था काम कर रही है। यही वो ‘नकली संतुलन’ है जहाँ दिखाया जाता है कि कानून सबके लिए बराबर है, लेकिन हकीकत में कार्रवाई का तराजू झुका होता है।

ऐसे बदल सकती है तस्वीर?

1. स्वतंत्र और पारदर्शी जांच एजेंसियाँ – जब तक जांच एजेंसियाँ राजनीतिक प्रभाव से मुक्त नहीं होंगी, तब तक बड़ी मछलियाँ बचती रहेंगी।

2. जनता का दबाव और मीडिया की भूमिका – जब तक मीडिया सिर्फ सनसनी फैलाने की बजाय जमीनी सच्चाई को उजागर नहीं करेगा, तब तक असली दोषी पर्दे में रहेंगे।

3.जो लोग अंदर से भ्रष्टाचार उजागर करना चाहते हैं, उन्हें कानूनी सुरक्षा और समर्थन चाहिए, ताकि सच सामने आ सके।

बाबू से लेकर चपरासी तक की गिरफ्तारी की खबरें अच्छी हेडलाइन बनती हैं, लेकिन ये समस्या की जड़ नहीं हैं। असली बदलाव तब आएगा जब वो लोग जो “सिस्टम” चलाते हैं, खुद सिस्टम के कटघरे में खड़े किए जाएंगे। तब जाकर देश वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ेगा, वरना अभी तो ये सिर्फ एक दिखावे की लड़ाई है—जिसमें छोटी मछलियाँ फंसती हैं और बड़े मगरमच्छ आराम से तैरते रहते हैं।

आपको बता दे कि “भारत न्यूज़ फर्स्ट” के पास ऐसे बड़े – बड़े मगरमच्छों की सूची है जिसका खुलासा जल्द आपको देखने को मिलेगा।

FAIZAN KHAN REPORTER

रिपोर्टर

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