
राजधानी देहरादून की सड़कों की हालत देखकर साफ झलकता है कि लोक निर्माण विभाग (PWD) के जिम्मेदार अफसर सिर्फ कागजों में ही विकास दिखा रहे हैं। धरातल पर हालात कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। करोड़ों का बजट हर साल सड़कों के नाम पर जारी होता है, लेकिन नतीजा यह है कि शहर की सड़कें जगह-जगह गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं।

जनता रोजाना जाम, धूल और हादसों का सामना कर रही है, जबकि विभागीय अफसर एसी कमरों में बैठकर सिर्फ चाय की चुस्कियों तक ही सीमित हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर जनता के टैक्स से मिलने वाला बजट कहाँ जा रहा है? सड़कें सुधरती क्यों नहीं और जिम्मेदारी तय क्यों नहीं होती?
जनमानस अब खुलेआम सवाल उठा रहा है कि करोड़ों का बजट सड़कों पर लगे या फिर अधिकारियों की जेब में? जनता जवाब चाहती है, क्योंकि मौजूदा हालात बता रहे हैं कि जिम्मेदारी और ईमानदारी—दोनों ही PWD विभाग से गायब हैं।


