
देहरादून
आज का दौर बच्चों को ‘नजरबंद’ बनाने की ओर बढ़ रहा है। स्कूल से लौटने के बाद जहां कभी गलियों में खेलकूद की किलकारियाँ गूंजती थीं, वहीं अब बच्चे टीवी, मोबाइल और कमरे की चारदीवारी में कैद होकर रह गए हैं।
ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय की एक ताज़ा स्टडी ने चौकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। इसमें पाया गया है कि 34% बच्चे स्कूल के दिन में भी महज़ 20 मिनट से कम ही बाहर खेल पाते हैं। वहीं 7 से 12 वर्ष आयु वर्ग के 2500 बच्चों पर हुए सर्वे में सामने आया कि बाहर खेलने की कमी उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर गहरा असर डाल रही है।
👉 सर्वे में मिले चौंकाने वाले आंकड़े
- 50.82% पुरुष और 49.18% महिलाएं मानती हैं कि बच्चे अब सामाजिक रूप से पिछड़ रहे हैं।
- जो बच्चे बाहर खेलते हैं उनकी सामाजिक और भावनात्मक समझ बेहतर होती है।
- कमरे में कैद रहने वाले बच्चों की मानसिक परेशानियाँ और व्यवहारिक दिक्कतें ज्यादा पाई गईं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों का बाहर खेलना न सिर्फ़ उनकी सेहत के लिए ज़रूरी है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और मानसिक मजबूती के लिए भी अनिवार्य है। लगातार घर की चारदीवारी में कैद रहने से बच्चे चिड़चिड़े, तनावग्रस्त और आत्मविश्वास से कमजोर होते जा रहे हैं।
अब समय आ गया है कि माता-पिता बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद और बाहरी गतिविधियों के लिए भी प्रेरित करें, वरना आने वाली पीढ़ी मानसिक बीमारियों की शिकार हो जाएगी।



