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दून अस्पताल के प्राइवेट कमरे — नाम बड़े, दर्शन छोटे! , और अस्पताल प्रशासन के बड़े- बड़े दावे क्या कहने?

पीआरओ की फौज, लेकिन मरीज बेसहारा — दून अस्पताल की हकीकत

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देहरादून

राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों के लिए बनाए गए प्राइवेट कमरे कागज़ों में तो मौजूद हैं, लेकिन हकीकत में उनका कोई लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। हालात यह हैं कि प्राइवेट रूम तो सिर्फ़ नाम के रह गए हैं, लेकिन पीआरओ (जनसंपर्क अधिकारी) की इतनी भरमार है कि मरीज और तीमारदार समझ ही नहीं पाते कि आखिर किससे संपर्क करें।

मरीजों का आरोप है कि अस्पताल में पीआरओ की नियुक्ति तो कर दी गई, लेकिन ये अधिकारी केवल दिखावे तक ही सीमित हैं। कामकाज के नाम पर इनका कोई ठोस रोल नहीं दिखता। मरीजों की सुविधा और मार्गदर्शन के लिए बनाए गए ये पद अब ‘भ्रम फैलाने वाले पद’ बन चुके हैं।

तीमारदारों का कहना है कि “एक काउंटर से दूसरे काउंटर भटकते रहते हैं, पीआरओ बताता है किसी और से मिलो, दूसरा कहता है तीसरे से मिलो। नतीजा ये होता है कि मरीज को सही जानकारी और सुविधा मिलने की बजाय और अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।”

दून अस्पताल प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि जब मरीजों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रहीं, तो आखिर इतनी पीआरओ फौज तैनात करने का क्या औचित्य है? स्वास्थ्य महकमे से मांग उठी है कि पीआरओ व्यवस्था की जांच हो और अस्पताल में प्राइवेट कमरों को वास्तव में मरीजों के लिए उपयोगी बनाया जाए।

प्राइवेट रूम में न ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था है, न ही डॉक्टर और नर्सों की नियमित आवाजाही सुचारु हो पाती है। अस्पताल के एक पीआरओ खुद मानते है कि इन कमरों में मरीजों तक पहुँचने में नर्स और डॉक्टर को दिक़्क़त होती है। कुछ इमरजेंसी होने पर जल्दी से सुविधा उपलब्ध कराने में कष्ट होता है। तो किस काम के है ये प्राइवेट कमरे?

मरीज़ और परिजन बताते हैं कि इन “प्राइवेट” कहे जाने वाले कमरों में इलाज की जगह सिर्फ़ नाम का बोर्ड ही मिलता है। ऊपर से अस्पताल प्रशासन ने इतने पीआरओ (जन संपर्क अधिकारी) तैनात कर रखे हैं कि मरीज और परिजन समझ ही नहीं पाते कि संपर्क किससे करें। लेकिन विडंबना यह है कि इतने पीआरओ होने के बावजूद किसी का भी काम सीधे मरीज की समस्या सुलझाने का नहीं दिखता।

सरकारी अस्पताल में इलाज की अपेक्षा लेकर आने वाले मरीज इन खोखली सुविधाओं से हताश हो रहे हैं। सवाल उठता है कि जब प्राइवेट रूम में भी मरीज को बुनियादी सुविधा नहीं मिल रही तो फिर आम वार्ड की स्थिति का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है।

अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से अब बड़ा सवाल यही है कि आखिर इन प्राइवेट कमरों का उद्देश्य क्या है — मरीजों को सुविधा या सिर्फ़ दिखावा?

Faizan Khan Faizy Editorial Advisor

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