
राजधानी देहरादून में सिटी बसों का संचालन आम जनता के लिए जितना जरूरी है, उतना ही अब यह सिरदर्द भी बनता जा रहा है। इन बसों के चालकों की मनमानी से न सिर्फ ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा रही है, बल्कि लोगों की जान भी खतरे में पड़ रही है।
बीच सड़क पर ‘स्टॉप’:
इन बसों को न कोई तय स्टॉप चाहिए, न कोई सिग्नल। जहां सवारी दिखी, वहीं बस रोक दी जाती है—फिर चाहे वह चौक हो या ओवरब्रिज का मोड़, इनके लिए हर जगह बस स्टैंड है। इससे ट्रैफिक जाम आम बात हो गई है, और एंबुलेंस से लेकर ऑफिस जाने वाले लोग तक परेशान हैं।
धुएं का बम:
इन बसों से निकलता काला धुआं न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि राहगीरों और दोपहिया वाहन चालकों के लिए दम घोंटने वाला बन चुका है। कई बसें तो मानो चलती-फिरती चिमनियां बन चुकी हैं। आखिर कब होगी इनकी फिटनेस जांच?
परिवहन विभाग की चुप्पी सवालों के घेरे में:
सवाल ये उठता है—परिवहन विभाग कब जागेगा? क्या इन्हें नियमित चेक नहीं किया जाता? क्या इनकी रूटीन फिटनेस टेस्टिंग बस कागजों तक ही सीमित है?
क्या हो कोई सख्त व्यवस्था?
- हर बस के लिए तय स्टॉप अनिवार्य हो
- धुआं उगलने वाली बसों पर भारी जुर्माना लगे
- चालकों के लिए ट्रैफिक नियमों की ट्रेनिंग जरूरी हो
- GPS सिस्टम से बसों की मॉनिटरिंग हो
देहरादून एक स्मार्ट सिटी बनने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन जब तक ये धुआं उगलती, जाम फैलाती बसें सड़कों पर बेलगाम दौड़ती रहेंगी, तब तक विकास का दम घुटता रहेगा।
अब वक्त है कि परिवहन विभाग और प्रशासन मिलकर एक ठोस और सख्त कदम उठाएं—वरना ये बसें शहर को ‘सफर’ से ‘अफ़रातफ़री’ की ओर ले जाएंगी।