
देहरादून
उत्तराखंड सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद पर पदोन्नति में स्पष्ट कोटा निर्धारण का मामला: हाईकोर्ट ने छह सप्ताह में निर्णय देने का आदेश दिया
उत्तराखंड सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता (सिविल) के पद पर पदोन्नति को लेकर उठे विवाद पर नैनीताल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए विभागीय प्रमुख अभियंता को छह सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का आदेश जारी किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने याचिका संख्या WPSS No. 1160/2025 पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
प्रारूपकार बनाम मिनिस्टीरियल स्टाफ: पदोन्नति में असमानता का आरोप
याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रारूपकार (ड्राफ्ट्समैन) कैडर के कर्मचारियों को शिथिलीकरण (relaxation) का लाभ देकर शीघ्र पदोन्नत किया जा रहा है, जबकि मिनिस्टीरियल और राजस्व कैडर के कर्मचारियों को समान अवसर नहीं मिल रहा है। यह भी बताया गया कि ड्राफ्ट्समैन अपेक्षाकृत जल्दी निर्धारित बेंचमार्क पूरा कर लेते हैं, जिससे वे 10% पदोन्नति कोटे का अधिक लाभ उठा लेते हैं।
कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी: बिना कोटा निर्धारण के पदोन्नति असमान
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि जब तक विभिन्न फीडर कैडरों (feeder cadres) के लिए स्पष्ट कोटा निर्धारण नहीं किया जाता, तब तक पदोन्नति की प्रक्रिया को समान नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता एक सप्ताह के भीतर प्रमुख अभियंता को इस संदर्भ में प्रत्यावेदन सौंपें, और प्रमुख अभियंता छह सप्ताह में इस पर निर्णय लें।
पुराना उदाहरण: परिवहन विभाग ने कोर्ट के निर्देश पर किया था कोटा निर्धारण
वर्ष 2020 में परिवहन विभाग में सहायक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (ARTO) पद पर पदोन्नति को लेकर ऐसा ही विवाद सामने आया था। उस समय भी हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि “फीडर कैडर में स्पष्ट कोटा निर्धारण के बिना की गई पदोन्नति की प्रक्रिया अवैध मानी जाएगी।” इस आदेश के अनुपालन में परिवहन विभाग ने पहले कोटा निर्धारित किया और फिर पदोन्नति की कार्रवाई को अंजाम दिया।
संवैधानिक दृष्टिकोण: अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का खतरा
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अगर किसी एक विशेष कैडर को बिना स्पष्ट कोटा निर्धारण के बार-बार पदोन्नति का लाभ दिया जाता है, तो यह न केवल पक्षपातपूर्ण रवैये को जन्म देगा बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी सीधा उल्लंघन माना जाएगा। इससे विभागीय कर्मचारियों में असंतोष और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
निष्कर्ष: विभागीय स्तर पर बड़े बदलाव की संभावना
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता पर बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई है कि वे निष्पक्ष, पारदर्शी और संवैधानिक मानदंडों के अनुसार सभी फीडर कैडरों के लिए स्पष्ट पदोन्नति कोटा तय करें। इस निर्णय से न केवल वर्तमान विवाद सुलझने की दिशा में बढ़ेगा, बल्कि भविष्य में पदोन्नति की प्रक्रियाओं में न्याय और समानता सुनिश्चित की जा सकेगी।