
देहरादून
देश में बीमार होना जितना भारी पड़ता है, उतना ही डरावना होता जा रहा है टेस्ट करवाना। प्राइवेट पैथोलॉजी लैब्स ने आम आदमी की बीमारी को भी बिज़नेस बना दिया है। किसी को बुखार हो या सिरदर्द, डॉक्टर की पर्ची से पहले ही जेब में छेद हो जाता है — क्योंकि टेस्ट के नाम पर शुरू हो जाती है लूटमार। राजधानी देहरादून के प्राइवेट लैब्स का भी यही हाल है जिनकी डॉक्टरों के साथ मिलीभगत और कमीशनखोरी ज़ोरो पर चल रही है लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले में आँखों पर पट्टी बाँधकर रखी है।
1,000 रुपये के टेस्ट को 3,000 में क्यों? कौन देख रहा है?
एक ही ब्लड टेस्ट के लिए एक लैब 500 रुपये लेती है, वहीं दूसरी 2000 से ऊपर। RT-PCR टेस्ट से लेकर हार्मोन टेस्ट, विटामिन D से लेकर थायरॉइड — हर जांच का कोई तय दाम नहीं। हर लैब अपनी मनमानी करती है, और मरीज़ मजबूरी में झेलता है।
एक पीड़ित मरीज़ कहते हैं, “डॉक्टर ने कुछ रूटीन टेस्ट लिखे थे। पास की लैब में गया, 6,700 रुपये का बिल पकड़ाया। बाद में पता चला दूसरे सेंटर पर वही टेस्ट 2,800 में हो रहे थे। क्या यही है नया भारत?”
सरकार क्यों सो रही है? रेट निर्धारण कब होगा?
सरकारी अस्पतालों में टेस्ट के लिए लंबी लाइनें और महीनों की वेटिंग। मजबूरी में मरीज़ प्राइवेट लैब्स की ओर जाता है, और वहीं से शुरू होती है खुली लूट।
सरकार को चाहिए कि वह तत्काल सभी डायग्नोस्टिक टेस्ट के लिए अधिकतम रेट निर्धारित करे, ठीक वैसे जैसे RT-PCR के समय कोविड में किया गया था। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि लैब्स के लाइसेंस के साथ उनके रेट लिस्ट का नियमित ऑडिट हो।
जहाँ सरकारी अस्पतालों में जांच की लंबी कतार और मशीनों की कमी मरीजों को रुलाती है, वहीं प्राइवेट लैब्स ने बीमारी का डर बनाकर मुनाफे की दुकान सजा रखी है। 200 रुपये का टेस्ट 1200 में! 500 का MRI 5000 में! मरीज करे तो क्या करे?
लूट की लैब रिपोर्ट:
• एक ही ब्लड टेस्ट के लिए अलग-अलग लैब में 5 गुना तक का फर्क!
• डॉक्टरों और लैब्स की सेटिंग से चलती है “कमीशन की दुकान” – मरीज अंधेरे में!
• कस्बों और छोटे शहरों में तो प्राइवेट लैब्स के मनमाने रेट का जंगलराज!
समाधान क्या है?
1. सभी पैथोलॉजिकल टेस्ट के लिए राष्ट्रीय स्तर पर रेट लिस्ट बने।
2. राज्य स्तर पर रेगुलेटरी बॉडी हो जो इन रेट्स को लागू कराए।
3. प्राइवेट लैब्स के पंजीकरण की कड़ी निगरानी और नियमों का सख्ती से पालन।
4. सरकारी अस्पतालों में आधुनिक जांच सुविधाएं बढ़ाई जाएं ताकि जनता की निर्भरता प्राइवेट पर कम हो।
सरकार अगर चाह ले तो लूटमार पर लगाम लग सकती है। इलाज हर नागरिक का अधिकार है, लेकिन टेस्ट के नाम पर जेब कटाई से ये अधिकार मज़ाक बन गया है।
अब समय है – मरीजों की जेब नहीं, प्राइवेट लैब्स की मनमानी पर चलाओ छुरी!
“भारत न्यूज़ फर्स्ट जल्द ही ऐसे जैब काट लैब्स की लिस्ट और इनका सच आपके सामने लाकर रखेगा और जनता को गुमराह होने से बचाएगा।