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संभलकर…कहीं रंग में न पड़ जाए भंग, गुलाल और गीला रंग कर सकते हैं अस्थमा को ट्रिगर ,ऐसे करे बचाव

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होली के दौरान अस्थमा और फेफड़ों से जुड़े मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी होती है। गुलाल और गीले रंग में सुक्ष्म कण मौजूद होते हैं, जो अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं। जब ये हवा में उड़ते हैं तो फेफड़ों में पहुंच जाते हैं। इससे मरीजों में सांस फूलने और खांसी की दिक्कत हो सकती है। चिकित्सकों ने होली के दौरान अस्थमा और फेफड़े की अन्य बीमारी से पीड़ित लोगों को खास सर्तकता बरतने की सलाह दी है।

उप जिला अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विजय सिंह का कहना है कि होली के दिन अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, ब्रोन्किइक्टेसिस, टीबी के मरीजों व एलर्जिक लोगों को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। बताया कि होली के दिन चारों ओर अबीर-गुलाल उड़ते रहते हैं। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। उन्होंने बताया कि सिंथेटिक गुलाल और गीले रंग में केमिकल और कांच के बारीक कण मिले होते हैं।

गुलाल और रंग में मौजूद कण हवा के माध्यम से व्यक्ति के श्वसन तंत्र में पहुंच जाते हैं। इससे सांस फूलना, खांसी, सीने में दर्द, घबराहट, बैचेनी की शिकायत होने लगती है। अगर समय पर उपचार नहीं किया जाता है तो मरीज का रेस्पिरेटरी फेल्योर भी हो सकता है। अस्थमा के मरीज दवाएं और इनहेलर साथ रखें।

ऐसे करें बचाव

– मास्क पहनें
– गुलाल और रंग लगाने के बाद उसको साफ कर लें
– होलिका दहन के समय धुएं से दूर रहें
– मरीज दवा लेते रहें
– इनहेलर अपने पास ही रखें
– पर्याप्त मात्र में पानी पीएं
– तला भुना और गरिष्ठ आहार न खाएं

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