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जनप्रतिनिधि हों या पत्रकार, सबके कॉल ब्लॉक — देहरादून पासपोर्ट ऑफिस में जवाबदेही कौन तय करेगा?

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देहरादून

जनता की सेवा के लिए बनाए गए सरकारी दफ्तरों में अफसरशाही का बोलबाला किसी से छिपा नहीं है, लेकिन देहरादून के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय में तो हालात और भी चौंकाने वाले हैं। यहां के क्षेत्रीय अधिकारी विजय शंकर पांडेय का रवैया इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है।

जानकारी के अनुसार, पांडेय साहब न तो जनप्रतिनिधियों के कॉल उठाते हैं, न ही मीडिया कर्मियों या अन्य उच्चाधिकारियों के। और अगर गलती से कभी कॉल उठा भी लिया जाए, तो काम सुनना या समस्या का समाधान करना तो दूर की बात, अगली बार कॉल करने पर नंबर ब्लॉक मिलता है।

ऐसे में सवाल उठता है —

क्या पासपोर्ट कार्यालय जनता के लिए है या केवल “साहब” की सुविधा के लिए?

जब एक जिम्मेदार अधिकारी संवाद से ही बचने लगे तो उसकी जवाबदेही कौन तय करेगा?

आम नागरिकों के मुताबिक, कई बार जरूरी पासपोर्ट मामलों में अफसर से संपर्क न हो पाने के कारण लोग दिल्ली मुख्यालय तक चक्कर काटने को मजबूर हैं। यह स्थिति न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि जनसंपर्क तंत्र की विफलता को भी सामने लाती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे अफसरों के खिलाफ विदेश मंत्रालय को सख्त रुख अपनाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर जनता से दूरी न बना सके।

पासपोर्ट जैसे जरूरी दस्तावेज़ को लेकर जहां आम जनता महीनों तक चक्कर काटती है, वहीं अफसरों की ऐसी ‘नौकरशाही ठसक’ जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

Faizan Khan Faizy Editorial Advisor

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