
देश के विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यों के संचालन के लिए हर साल करोड़ों रुपये की लागत से मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप, प्रिंटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं। ये खरीदारी अक्सर ‘कार्य की आवश्यकता’ के नाम पर की जाती है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन उपकरणों का उपयोग किसके लिए और कितनी पारदर्शिता से किया जाता है?
सूत्रों के अनुसार, देहरादून में भी कई बार देखा गया है कि अधिकारी अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए विभागीय बजट से महंगे टैबलेट या स्मार्टफोन खरीद लेते हैं। इनकी फाइलों में इसे “दफ्तर के काम के लिए आवश्यक” बता दिया जाता है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि सामान के असल उपयोग पर शायद ही कभी कोई निगरानी या ऑडिट होता है।
किसके पास रह जाते हैं ये उपकरण?
अक्सर यह सवाल उठता है कि जब कोई अधिकारी स्थानांतरित हो जाता है या सेवानिवृत्त होता है, तो उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए ये टैब, फोन या अन्य डिवाइस विभाग को लौटाए जाते हैं या नहीं? कई मामलों में यह देखा गया है कि विभागीय रिकॉर्ड में ऐसे उपकरणों का कोई हिसाब नहीं रहता। न ही इनकी नियमित जाँच होती है कि उपकरण अब किसके पास हैं और क्या वे अभी भी विभागीय कार्यों में प्रयुक्त हो रहे हैं।
जरूरत है पारदर्शी प्रणाली की
इस तरह की स्थिति न केवल सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की आशंका को जन्म देती है, बल्कि सरकारी संसाधनों की जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि विभागों में खरीदे गए सभी उपकरणों का एक केंद्रीय रजिस्टर होना चाहिए, जिसमें यह स्पष्ट हो कि कौन-सा सामान किसके पास है, कब खरीदा गया, और उसका वर्तमान उपयोग क्या है।
इसके अलावा, हर सरकारी कार्यालय में एक वार्षिक ऑडिट प्रक्रिया भी होनी चाहिए, जिसमें यह जांचा जाए कि जो उपकरण खरीदे गए हैं, वे अभी भी विभागीय कार्यों में प्रयुक्त हो रहे हैं या नहीं। इस प्रक्रिया को स्वतंत्र एजेंसी द्वारा संपन्न कराया जाए, तो निष्पक्षता बनी रह सकती है।
सरकारी विभागों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह बेहद आवश्यक है कि विभागीय खरीदी गई वस्तुओं की पूरी ट्रैकिंग हो। टैबलेट, फोन जैसे आधुनिक उपकरण आज के समय में कार्य निष्पादन का हिस्सा हैं, लेकिन यदि इनका दुरुपयोग व्यक्तिगत सुविधा के लिए किया जा रहा है, तो यह करदाताओं के पैसे के साथ अन्याय है।
सरकार को इस दिशा में स्पष्ट नीतियाँ बनानी होंगी और विभागीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर खरीदी गई वस्तु केवल विभागीय हित के लिए ही उपयोग हो — और उपयोग न होने की स्थिति में उसे विभाग को तत्काल लौटाया जाए।