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“वेतन के बावजूद रिश्वत क्यों? जब सरकारी कुर्सी ‘सेवा’ नहीं ‘सौदा’ बन जाए!” रिश्वतखोरों पर ये खास रिपोर्ट पढ़े

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देहरादून

“क्या रिश्वत सरकारी काम की अनिवार्य शर्त बन चुकी है?”

भारत में जब आम नागरिक किसी सरकारी कार्यालय में अपने काम के लिए जाता है, तो अक्सर उसे यह सुनने को मिलता है – “काम हो जाएगा, बस थोड़ा ‘समझदारी’ दिखानी होगी।” समझदारी का मतलब यहां ‘रिश्वत’ होता है। सवाल ये उठता है कि जब सरकारी अधिकारी को हर महीने वेतन मिलता है, तो फिर वो बिना रिश्वत के काम क्यों नहीं करता?

क्या कोई ऐसा नियम है जो कहता है कि “सरकारी काम तभी होगा जब रिश्वत दी जाए?” नहीं, ऐसा कोई नियम नहीं है। लेकिन व्यवहार में रिश्वत एक ‘अनकहा नियम’ बन चुकी है – एक कड़वा सच, जिसे हर भारतीय जानता है लेकिन बोलने से डरता है।

सच्चाई क्या है?

कोई लिखित नियम नहीं – पर व्यवहार में आम बात:

भारतीय संविधान और सेवा नियमावली स्पष्ट रूप से यह कहती हैं कि सरकारी अधिकारी को उसके काम के लिए वेतन मिलता है और वह जनता की सेवा के लिए नियुक्त है। भारतीय दंड संहिता (IPC) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act, 1988) रिश्वत लेना एक अपराध मानते हैं।

लेकिन विडंबना यह है कि रिश्वतखोरी सरकारी व्यवस्था का ‘अघोषित नियम’ बन गई है।

रिश्वतखोरी के पीछे के कारण:

1. जवाबदेही की भारी कमी:
अधिकांश मामलों में अगर कोई अधिकारी रिश्वत मांगता है और काम में देरी करता है, तो उसके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती। इससे उन्हें यह यकीन हो जाता है कि उन्हें कुछ नहीं होगा।

2. सज़ा का डर नहीं:
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच बहुत लंबी चलती है और सजा के उदाहरण दुर्लभ हैं। इससे एक मानसिकता बन जाती है कि “सब कर रहे हैं, मैं भी कर लूं।”

3. लालफीताशाही और जटिल प्रक्रिया:
सरकारी प्रक्रिया इतनी जटिल और धीमी है कि आम आदमी ‘काम जल्दी करवाने’ के लिए रिश्वत देने को तैयार हो जाता है।

4. राजनीतिक संरक्षण:
कई भ्रष्ट अधिकारी नेताओं के करीबी होते हैं, और जब उन पर उंगली उठती है तो राजनैतिक ताकत उनके बचाव में आ जाती है।

5. सामाजिक चुप्पी:
जनता ने भ्रष्टाचार को ‘नियमित खर्च’ मान लिया है। जैसे स्कूल की फीस, बिजली का बिल – वैसे ही “काम की फीस” यानी रिश्वत।

वेतन के बावजूद रिश्वत – यह दोहरा चेहरा क्यों?

सरकारी अधिकारियों को 7वें वेतन आयोग के बाद अच्छा वेतन, भत्ते, मकान, वाहन और पेंशन मिलती है। इसके बावजूद रिश्वत की भूख बनी रहती है।

इसका मतलब यह नहीं कि वेतन कम है, बल्कि लालच ज़्यादा है।

कुछ कड़वे उदाहरण:
• जमीन का म्यूटेशन करवाना हो, तो बिना “चाय-पानी” दिए फाइल आगे नहीं बढ़ती।
• जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र – सब में रिश्वत एक ‘प्रक्रिया’ बन गई है।
• पुलिस थाने में FIR दर्ज कराना हो, तो बिना ‘खर्चा-पानी’ के काम नहीं चलता।

समाधान क्या हो सकता है?
1. डिजिटलीकरण और पारदर्शिता:
• अधिकतर सरकारी सेवाएं ऑनलाइन की जाएं।
• ट्रैकिंग सिस्टम हो कि किस अधिकारी के पास कितनी देर से फाइल पड़ी है।
2. कड़ी सज़ा और तुरंत कार्रवाई:
• रिश्वत लेने वाले अधिकारी को
महीने के अंदर सज़ा और सेवा से बर्खास्तगी।

3. जनता की जागरूकता:
• लोगों को उनके अधिकार पता हों और वे ‘रिश्वत देने’ से इनकार करें।

• RTI और लोकपाल जैसे कानूनों का इस्तेमाल बढ़े।
• भ्रष्टाचार की सूचना देने वाले व्यक्ति को सुरक्षा और पुरस्कार मिले।

रिश्वत लेना किसी कानून में नहीं लिखा, पर व्यवस्था की खामियों ने इसे नियम बना दिया है। यह समस्या तब तक खत्म नहीं होगी जब तक सिस्टम पारदर्शी, जवाबदेह और डर से नहीं चलेगा। अगर जनता साथ दे और सरकार सख्त हो, तो ये ‘अघोषित नियम’ खत्म किया जा सकता है।

FAIZAN KHAN REPORTER

रिपोर्टर

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