
देहरादून
पत्रकारों की स्वतंत्रता पर लगातार बढ़ते दबाव और पुलिसिया पूछताछ पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने साफ कर दिया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी पत्रकार से उसके सूत्रों के बारे में जानकारी नहीं मांग सकता है ।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 19(1) और 22 का हवाला देते हुए कहा कि पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी तरह का अंकुश अस्वीकार्य है । चीफ जस्टिस ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा – आजकल यह देखने को मिल रहा है , कि बिना किसी ठोस सबूत और बिना जांच के पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं । पुलिस श्रेष्ठ बनने के चक्कर में पत्रकारों की स्वतंत्रता का हनन कर रही है । उन्होंने स्पष्ट किया कि यहां तक कि कोर्ट भी किसी पत्रकार को अपने सूत्र बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
इस फैसले के बाद मीडिया जगत में जबरदस्त उत्साह है । गौरतलब है कि पत्रकारों को अपने सूत्रों को गोपनीय रखने का अधिकार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 की धारा 15(2) में दिया गया है । हालांकि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम सीधे तौर पर कोर्ट में लागू नहीं होते , लेकिन यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बेहद अहम हैं । सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पत्रकारिता की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश पर बड़ा प्रहार है । यह साफ संदेश है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और उस पर गैरजरूरी दबाव या दखल स्वीकार्य नहीं होगा ।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में भी हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे लोकतंत्र के लिए सकारात्मक कदम बताया है । वहीं , सरकार के प्रवक्ताओं ने कहा है कि वे इस फैसले का सम्मान करते हैं और कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे की रणनीति तैयार करेंगे ।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता को नया आयाम देगा । इससे पत्रकारों को सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने और जनहित के मुद्दों को उठाने का हौसला मिलेगा । अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह संरक्षण न केवल लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करेगा , बल्कि सरकार को भी अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगा ।