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“इंदौर के बाद अब देहरादून: क्या यह शहर भी कहेगा भीख को अलविदा?”

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देहरादून

मध्य प्रदेश की इंदौर शहर ने स्वच्छता और शहरी विकास में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अब एक और पहल ने इंदौर को चर्चा में ला दिया है—“बेगर-फ्री सिटी” यानी ऐसा शहर जहाँ सड़कों पर भीख मांगते लोगों की संख्या न के बराबर हो। इंदौर प्रशासन की इस पहल से प्रेरणा लेते हुए अब देहरादून में भी इसी तरह की योजना लागू करने की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं।

क्या है ‘बेगर-फ्री सिटी’ मॉडल?

‘बेगर-फ्री सिटी’ का मतलब सिर्फ भीख मांगने पर पाबंदी नहीं है, बल्कि यह एक समग्र पुनर्वास कार्यक्रम है, जिसमें बेघरों, मानसिक रूप से अस्वस्थ और आर्थिक रूप से विपन्न व्यक्तियों के लिए शेल्टर होम, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार प्रशिक्षण और पुनर्वास योजनाएं शामिल होती हैं।

इंदौर मॉडल की सफलता

इंदौर नगर निगम और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर एक मजबूत अभियान चलाया, जिसमें—
• भीख मांगने वाले व्यक्तियों की पहचान और उनका डेटा संग्रह
• रेस्क्यू अभियान के तहत उन्हें अस्थायी आश्रय स्थलों में भेजना
• NGO और CSR के सहयोग से चिकित्सा जांच, काउंसलिंग और स्किल डेवेलपमेंट
• पुनर्वास के बाद स्थायी आवास और रोजगार दिलवाना शामिल था।

देहरादून में संभावनाएं

देहरादून, उत्तराखंड की राजधानी होने के साथ-साथ एक प्रमुख पर्यटक और शैक्षणिक केंद्र भी है। शहर में भीख मांगने की समस्या सार्वजनिक स्थानों पर देखने को मिलती है—जैसे रेलवे स्टेशन, घंटाघर, धर्मशाला क्षेत्र और आईएसबीटी। यदि इंदौर मॉडल को सही रूप से लागू किया जाए, तो देहरादून भी “बेगर-फ्री सिटी” बन सकता है।

कैसे शुरू हो सकती है पहल?
1. सर्वे और डेटा एकत्रीकरण: पहले चरण में नगर निगम को शहर में मौजूद भिक्षुओं की संख्या और उनके ठिकानों का सर्वे करना होगा।
2. शेल्टर होम की व्यवस्था: नगर निगम और सामाजिक संस्थाओं को मिलकर अस्थायी शेल्टर की स्थापना करनी होगी।
3. काउंसलिंग व चिकित्सा सहायता: मानसिक रूप से अस्वस्थ या बीमार लोगों के लिए चिकित्सा सुविधा अनिवार्य होगी।
4. स्किल ट्रेनिंग और रोजगार: रोजगार कार्यालय के सहयोग से भिक्षुकों को हुनर सिखाकर रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।
5. सख्त कानूनी कार्रवाई: पुनर्वास के बाद भी भीख मांगने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया जा सकता है।

 

हालांकि यह एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इसमें कई चुनौतियां भी होंगी:
• पुनर्वास के बाद भिक्षावृत्ति में वापसी की संभावना
• मानसिक रोगियों की उचित देखरेख
• स्थायी रोजगार की कमी

इनका समाधान सामाजिक संस्थाओं, CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी), और राज्य सरकार के तालमेल से निकाला जा सकता है।

 

देहरादून को “बेगर-फ्री सिटी” बनाने की दिशा में यह एक सकारात्मक और आवश्यक कदम होगा, जो न सिर्फ शहर की छवि को सुधारेगा, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को गरिमा से जीने का अवसर भी देगा। इंदौर ने रास्ता दिखाया है, अब बारी देहरादून की है।

 

आपको बता दें कि देहरादून को भिक्षावृत्तिमुक्त (Beggar-Free City) बनाने के लिए उत्तराखंड सरकार और जिला प्रशासन ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इन पहलों का उद्देश्य न केवल शहर की छवि सुधारना है, बल्कि भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को मुख्यधारा से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना भी है।

13 फरवरी 2025 को देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल के नेतृत्व में जिला प्रशासन ने बैगर्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एक समझौता (MoU) किया। इस पहल का मुख्य उद्देश्य भिक्षावृत्ति में लिप्त वयस्कों को कौशल विकास प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार से जोड़ना है। इसके तहत:

भिक्षावृत्ति में लिप्त व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें रेस्क्यू किया जाएगा और प्रशिक्षण केंद्रों में भेजा जाएगा।

कौशल विकास: सिलाई, खाना बनाना, हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।

उद्यमिता प्रोत्साहन: प्रशिक्षित व्यक्तियों को व्यवसाय शुरू करने के लिए मार्गदर्शन, विपणन सहायता और माइक्रोफाइनेंस उपलब्ध कराया जाएगा।

उत्पाद विपणन: उनके उत्पादों को होटल, दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बाजार तक पहुंचाया जाएगा।

 

बाल भिक्षावृत्ति पर विशेष ध्यान

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बाल भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए तीन रेस्क्यू वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इन वाहनों का उद्देश्य बच्चों को भिक्षावृत्ति से बचाकर उनके पुनर्वास में मदद करना है।

 

स्मार्ट सिटी और ग्रीन सिटी

देहरादून को स्मार्ट और ग्रीन सिटी बनाने के लिए सरकार ने विभिन्न परियोजनाएं शुरू की हैं:

स्मार्ट सिटी योजना: देहरादून स्मार्ट सिटी योजना के तहत 70% कार्य पूरे हो चुके हैं, जिसमें स्मार्ट टॉयलेट, स्मार्ट स्कूल, इलेक्ट्रिक बसें और वाटर एटीएम शामिल हैं।

•• सिटी फॉरेस्ट पार्क: तरला नागल में 36.97 करोड़ रुपये की लागत से सिटी फॉरेस्ट पार्क का निर्माण किया गया है, जिसमें साइकिल ट्रैक, जॉगिंग पाथ, बच्चों के लिए खेल क्षेत्र और ओपन जिम जैसी सुविधाएं हैं।

• ईवी चार्जिंग स्टेशन: शहर में चार इलेक्ट्रिक व्हीकल्स चार्जिंग स्टेशन का उद्घाटन किया गया है, जिससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।

देहरादून को भिक्षावृत्तिमुक्त, स्मार्ट और ग्रीन सिटी बनाने की दिशा में सरकार और जिला प्रशासन की ये पहलें सराहनीय हैं। इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से न केवल शहर की छवि में सुधार होगा, बल्कि समाज के वंचित वर्गों को भी मुख्यधारा में शामिल करने में मदद मिलेगी।

FAIZAN KHAN REPORTER

रिपोर्टर

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